(नागपत्री एक रहस्य-32)

परिवार में तनाव का माहौल देख लक्षणा खुद भी परेशान थी, क्योंकि कोई भी ना आज उससे बात कर रहा था, और ना ही कोई उसके सवालों के जवाब देने को तैयार था, मतलब साफ था कि अवश्य ही कोई बड़ी परेशानी है, क्योंकि उनके परिवार में अशांति का माहौल दूर-दूर तक देखने में नहीं आता।
                  तब फिर भला आज ऐसा क्या हुआ जो सभी चिंतित है?? और कोई लक्षणा से बात करने तक का समय नहीं दे पा रहा है।

घर का हर सदस्य हर तिजोरी खोलकर पेपर पढ़ता, और फिर निराश होकर वापस रख देता, जैसे वे किसी और चीज की तलाश कर रहे हैं, इतने बड़े घर में सबकी अपनी-अपनी तिजोरियां और पेपर थे, किसी ने अपने पुराने खत को संभाल कर रखा तो किसी ने अलग-अलग प्रॉपर्टी के पेपर।
                   लेकिन कोई भला दूसरे के खतों में क्यों अपना समय बर्बाद करेगा, अवश्य ही कोई और मामला था, सोचते हुए वह जाकर चुपचाप डायनिंग हॉल में बैठ सबका आना जाना देख रही थी।

लक्षणा ने गौर किया कि मेन टेबल पर एक पेपर पेपरवेट के नीचे रखा है, जिसे सभी समय समय पर आकर देखते पढ़ते और फिर अपनी खोज में लग जाते हैं, आज छुट्टी के दिन सुबह से लगभग आधी अलमारियों की जांच की जा चुकी थी, जिनमें शायद प्रॉपर्टी के पेपर रखे हुए थे।
                 उसने बड़े गौर से देखा, वह पेपर कोई साधारण कागज का टुकड़ा नहीं था, अपितु कोर्ट से आया हुआ एक नोटिस था, जिसमें उनके गांव की पैतृक संपत्ति पर मालिकाना हक साबित करने के लिए जमीन की रजिस्ट्री के पेपर मांगे गए थे, जो नहीं मिल रहे थे और शायद उसका मूल कारण यह भी था कि परिवार पहले एक साथ रहता था, फिर सब ने आपसी सहमति से अपना अपना हिस्सा लिया और सभी संपन्न होने के कारण गांव से बाहर शहरों में बस गए।


किसी ने भी आज तक पैतृक संपत्ति पर दावा पेश नहीं किया, क्योंकि दिनकर जी के चाचा और ताऊजी बहुत मेहनती और संस्कारी थे, सभी अपनी अपनी जगह पूर्ण संपूर्ण थे, तब फिर भला क्यों कोई उस पैतृक संपत्ति की ओर मुड़ कर देखेगा।
                 उसे तो वे सभी बुजुर्गों का आशीर्वाद और उनकी परिछाया मानकर चलते थे।

दिनकर जी को अच्छे से याद है कि एक समय ऐसा था जब सभी परिवार कितनी भी व्यस्तता होने पर भी सभी उनके चाचा, ताऊजी सबके साथ उनके गांव के आम के बगीचे जो पुश्तैनी घर से लगा हुआ था, सभी आकर वहां मजा करते थे।
                  लेकिन धीरे-धीरे सभी बच्चे बड़ी कक्षाओं में चले गए, सब का व्यापार बढ़ता गया और समय पंख लगाकर उड़ता चला गया, पता ही न लगा कि वे आखिरी बार कब मिले थे?कभी कबार किसी शादी-ब्याह पर मेल मिलाप हो जाता, और कभी कबार अति आवश्यक होने पर फोन की घंटी बज जाती, बस यहीं तक संबंध शेष रह गए थे।

कभी किसी ने भी जायदाद के पेपर के बारे में चर्चा तक नहीं की, लेकिन आज अचानक सरकार ने नई नीति के कारण सभी परिवारों को बही में सुधार और पट्टों की गणना के लिए अपना अपना वसीयतनामा पेश करने को कहा गया, तब कहीं जाकर सबको यह एहसास हुआ कि आज तक उन्होंने वसीयतनामा पर ध्यान ही नहीं दिया।
                क्योंकि गांव के विवाद में बहुत कम होते और नौकर चाकर जिनके भरोसे खेती छोड़ रखी है, खुद ही मुनाफे का पैसा और फसल पूरी इमानदारी से सभी के घर पहुंचा देते, लेकिन आज अचानक आइ ये नई समस्या से कैसे निपटे समझ न आता, क्योंकि वास्तव में वह पेपर उस विषय में आज तक किसी ने सोचा ही नहीं था।

आज पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही टेलीफोन बज रहा है, रह-रहकर सब के फोन आते और सब यही सवाल पूछते कि आखिर वसीयतनामा किसी को मिला क्या??
                   क्योंकि गांव के ट्रंक(पेटी ) धीरे-धीरे लगभग सभी ने उठाकर अपने घर ले जा लिए, लेकिन वसीयतनामे पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

आज वही पुराने ट्रंक खोले जा रहे थे, जिनमें कई पुरानी फोटो, भेजे गए पत्र, पुरानी मुद्राएं ,कौडी, आना सब कुछ निकल रहे थे, लेकिन वो नहीं मिल रहा था, जबकि जिसकी सब तलाश कर रहे थे।
             अचानक लक्षणा की ओर उसके दादाजी का ध्यान गया और पूछने लगे, लक्षणा क्या बात है??गंभीर लग रही हो, कोई परेशानी है क्या लक्षणा??
       

लक्षणा ने बड़ी मासूमियत से कहा नहीं दादाजी आप सब को परेशान देखकर थोड़ी परेशान हूं, क्या मैं भी कुछ मदद कर करूं, उसकी बात सुन यह सोच उसे अपने पुराने ट्रंक के पास ले गए कि इसी बहाने लक्षणा पुरानी चीजों से रूबरू हो जाएगी, और शायद उसके सवाल भी खत्म हो जाएंगे।
                क्योंकि इस समय तो उससे बात करने का समय किसी के पास नहीं है, लेकिन जैसे ही लक्षणा ट्रंक के पास पहुंची, ट्रंक को हाथ लगाकर मन ही मन कुछ सोचने लगी और बोली दादा जी क्या आप मुझे आपके दादा जी की तस्वीर दिखा सकते हो क्या??

तब फटाफट दिनकर जी के पिताजी ने ट्रंक खोलकर देखना प्रारंभ किया, और अंततः उन्होंने एक ब्लैक एंड वाइट तस्वीर अपने पिताजी की लक्षणा को दिखाई, जिसमें उनके पिताजी एक हाथ में दादा की तस्वीर और दुसरे हाथ में वसीयतनामा लेकर खड़े थे।
             लक्षणा ने तुरंत कहा कागज तो मिल गया दादा जी, यदि आप बात माने तो वह कागजात भी इसी तस्वीर के साथ है, यकीन ना हो तो खोल कर देख लीजिए।


दादाजी भली-भांति जानते थे कि लक्षणा में नाग शक्ति के गुण मौजूद है, और उसकी बात असत्य नहीं हो सकती क्योंकि किसी भी गुप्त राज और धन को तुरंत भाप लेने की शक्ति और ढूंढ लेने की शक्ति नाग और गंधर्व के पास विशेष रूप से संरक्षित है।
             उन्होंने तुरंत फोन उठाया और अपने बड़े भाई को नंबर डायल कर अपने दादाजी की पुरानी तस्वीर ध्यान से देखने को कहा, जिसके प्रति उत्तर में सामने से जवाब आया कि वह तस्वीर आज भी बरामदे में तथावत लगी हुई है और मैं उसे वर्षों से देख रहा हूं, लेकिन ऐसा तो कुछ नजर नहीं आया, शायद परेशान होने के कारण उनके बड़े भाई ने इस तरह का जवाब उनको दिया।

लेकिन लक्षणा की बात रखना भी जरूरी था, उन्होंने कहा मेरे पास जो तस्वीर है, उसमें दादाजी अपने तस्वीर के साथ वसीयतनामा पकड़े हुए हैं, देखिए कि उस तस्वीर के पीछे ही या तस्वीर में ही कोई सबूत मिल जाए??
                 तब तुरंत घर वालों ने उस तस्वीर को पलट कर देखा तो तस्वीर टांगने की जगह और उसके चारों कोने पर सरकारी मोहर लगी थी, जिसे सावधानीपूर्वक खोलकर देखने पर वसीयत के सारे पेपर बिल्कुल सुरक्षित मिल गए।

वास्तव में यह वो चरण नहीं था, जब लक्षणा अपनी शक्तियों का धीरे-धीरे आभास करने लगी थी, भविष्य देखना या भविष्य को भाप लेना उसने अभी-अभी प्रारंभ किया था, जो खुद उसके लिए उत्सुकता के साथ भय का भी कारण बनता जा रहा था।

क्रमशः....

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1 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 02:34 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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